कल दोपहर तकरीबन सवा बारह बजे, चेतन भगत से बात हुई। चेतन ने जैसे ही फोन उठाया बोले, 'कैसे हो प्रवीण जी? आपका ब्लॉग शानदार है। मैंने पढ़ा है।'
'लेकिन आज तो जंग छिड़ी हुई है चेतन जी'
'ऐसा क्या हो गया?'
'बस मैंने सच्ची बात लिख दी। बात कड़वी थी, कुछ लोगों को डाइजेस्ट नहीं हुई। सच्चाई कड़वी ही होती है न...।'
चेतन - 'सही कर रहे हो, लिखो। ब्लॉगिंग तो चीज ही ऐसी है, जिसकी इच्छा होगी पढ़ेगा। जिसकी नहीं होगी नहीं पढ़ेगा। लेकिन वाकई मैंने पूरा ब्लॉग देखा, अच्छा काम कर रहे हो।'
फिर हमारी बातचीत मुद्दे पर आ गई जिसके लिए मैंने फोन किया था। आज बातचीत पत्रिका के सभी संस्करणों (संपूर्ण भारत) में प्रकाशित हुई है। (बातचीत पढऩे के लिए कृपया इमेज पर क्लिक करें)
3 comments:
बधाई !
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जी हाँ पढ़ लिया..
--बहुत बहुत बधाई इस बातचीत की प्रस्तुति के लिए.
युवा साहित्यकार चेतन जी के विचार बहुत अच्छे लगे उनकी कही बात की आर्थिक आज़ादी को आधार बनाना जरुरी है..बहुत सही लगी...जब तक हर नागरिक आर्थिक आज़ादी नहीं पायेगा तब तक वह कैसे देश के बारे में सोच सकेगा..वह तोसिर्फ अपने लिए दो जून की रोटी जुटाने में ही लगा रहेगा..विकास की बातें भूखे पेट नहीं हो सकती..चेतन जी की बातें आज के समय में सारगर्भित हैं.शुक्रिया
अरे बाप रे,
इत्ते बड़े बड़े लोगों से आपकी बात होती हैं !
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