बिना हाथों के तैराकी में विश्व रिकॉर्ड ! आश्चर्य !


आपकी सांसे अटक जाएंगी, जब आप इस बिना हाथ वाले तैराक को जानेंगे। आपको पता चलेगा कि इस असाधारण प्रतिभा के धनी ने वह सब कुछ अचीव किया है, जो लोग दोनों हाथ होकर भी नहीं कर पाते। तैराकी में बिना हाथों के विश्व रिकॉर्ड बनाने वाले रूस के चर्चित तैराक इगोर प्लोत्नीकोव के हौसलों को जानें, उन्हीं के शब्दों में -

मैं जिंदा हूँ, क्योंकि मौत मुझे खौफजदा नहीं कर पाती। लोग अपाहिज को दया भाव से देखते हैं, लेकिन उनकी इसी नजर से मुझे नफरत है। आखिर क्यों मुझे या किसी भी अपाहिज को वो ऐसी निगाहों से देखते हैं, जिनमें तरस भरा हो। ...दया भाव भरा हो। मैंने बस उम्मीद पर अपना जीवन जीया है और अपने हौसले पस्त नहीं होने दिए। जानता हूँ, मुश्किलें तो हर इंसान को तोडऩे ही आती हैं, लेकिन मैं टूट जाना पसंद नहीं करता।

आपको खुशी होगी जानकर कि मैंने बिना हाथों के भी तैराकी में विश्व रिकॉर्ड कायम किया है। 2004 में एथेंस में हुए पैराओलंपिक खेलों में मैंने भाग लिया और तैराकी करते हुए 32.52 सैकंड में 50 मीटर की बटरफ्लाई स्वीमिंग में रिकॉर्ड बनाया। आप सोच रहे होंगे बिना हाथों के एक तैराकी प्रतियोगिता में मैं कैसे प्रतियोगी बन पाया, कैसे उन लोगों को टक्कर दे पाया, जिनके दोनों हाथ वहां सलामत थे और वो तैर रहे थे? लेकिन शायद जिसे सबने मेरी कमजोरी समझा, उसी मजबूती ने, मजबूत हौसले ने मुझमें जीतने की ज़ील पैदा की।

मैं सिर्फ इतना ही जानता हूँ कि जीजस ने किसी को भी बिना वजह इस दुनिया में नहीं भेजा है। न आपको न मुझे। वे चाहते हैं कि मैं कुछ बड़ा काम करूं। शुरुआत मैं कर चुका हूँ। जब आगाज ऐसा है, तो अंजाम भी अच्छा ही होगा। ...लेकिन बस आप किसी अपाहिज को कमजोर नजरों से मत देखना। एक हौसला देना उसे...। ऐसा हौसला जो उसमें दुनिया जीतने का जज्बा पैदा कर सके।
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10 comments:

Admin said...

सलाम इस जज्बे को और आपकी कलम को!

Udan Tashtari said...

वाकई करिश्मा..सलाम इस योद्धा को!

संजय तिवारी said...

आपकी लेखन शैली का कायल हूँ. बधाई.

विवेक रस्तोगी said...

कुछ कर गुजरने की प्रेरणा मिलती है ऐसे ही..

Ashish Khandelwal said...

अच्छी जानकारी..हैपी ब्लॉगिंग

राजीव तनेजा said...

ऐसे लोगों की हिम्मत और जज़्बा देख कर खुद में भी जोश भरने लगता है

दुलाराम सहारण said...

अच्‍छा लिखा है, प्रेरणा देगा।
हिम्‍मती लोगों की हिमायत करना लोकधर्म होता है।

बधाई।

शशांक शुक्ला said...

कमाल है। तारीफ करनी होगी इन जनाब के हौसले को। पता नहीं किसी ने ये कहा है कि नहीं पर सच है कि जीत ताकत से नहीं हौसले से होती है, हौसला हो तो ताकत आ ही जाती है, और हौसले ही रास्ते साफ करते है।

Gyan Darpan said...

सलाम इस जज्बे को !

जिन लोगों को भारतीय योग की जानकारी होती है उन्हें तैरने के लिए हाथ व पैर हिलाने की जरुरत नहीं होती | मेरे नानाजी अब इस दुनिया में नहीं है लेकिन मैंने अपने बचपन में उन्हें तालाब में तैरते देखा था वे कभी पानी पर हाथ पैर नहीं मारते थे बस पानी पर लेट कर ऐसे सो जाते थे जैसे कोई चारपाई पर सो रहा हो और उसके बाद उनको तैरता देख एसा लगता था मानो कोई लाश पानी पर तैर रही हो |

Unknown said...

वाकई प्रेरणादायी है ...