तूफानों की कमी नहीं जीवन में...

बिना पैरों वाले फोटोग्राफर केविन कोनोली ने खींची विश्वभर में घूम-घूम कर 32 हजार से ज्यादा तस्वीरें। ...आप भी जाने इस तूफानों से भरे जीवन को केविन की ही जुबानी।
मैं 22 साल का हूँ। मेरे दोनों पांव नहीं हैं। बस दो हाथ ही मेरी जिंदगी का सहारा हैं। इन्हीं हाथों के सहारे स्केट बोर्ड पर मुझे अपना सारा सफर तय करना होता है। मैं दो बार पूरी दुनिया घूम चुका हूँ। सफर पूरा होने से पहले मैं अगले सफर की प्लानिंग शुरू कर देता हूँ। मैं व्यावसायिक फोटोग्राफर हूँ और अब तक विश्व भर से 32,728 से ज्यादा तस्वीरें खींच चुका हूँ।
अमरीका के हैलिना में मैंने जन्म लिया था। मेरे पैदा होते ही मां और पिताजी को डॉक्टर का जवाब मिला, 'इसे स्पॉरेडिक बर्थ डिफेक्ट' है। बचपन से ही दोनों पांव नहीं हैं। अपने निचले धड़ को घसीट कर चलना और दोनों हाथों को अपने चलने का साधन बना लेने के अलावा मेरे पास कोई विकल्प नहीं था। सात साल की उम्र में घरवालों ने मुझे चमड़े की पैंट तैयार करवा कर दी। अक्सर जमीन की रगड़ से शरीर छिल जाता था। इसी रगड़ से मैं बचा रहूँ, मैंने इस पैंट को पहना जो आज तक मेरे साथ है। यह चमड़े और रबर से बनी है, ताकि मुझे चलने में असुविधा न रहे। मुझे हर रोज मां व्हील चेयर पर बिठाकर स्कूल छोडऩे जाती और वापस लाती। इसी समय अपने शरीर का संतुलन बनाना सीखने के लिए मैंने जिम्नास्टिक की क्लास में जाना शुरू कर दिया था। जब मैं 18 साल का हुआ, तो मुझे स्केट बोर्ड दिलाया गया। ...और जैसे मेरे शरीर के पंख ही लग गए। कॉलेज में क्लास लेने के बाद मैं अपना ज्यादा से ज्यादा समय स्केट बोर्ड पर कॉलेज कैंपस में इधर-उधर घूमने में बिताता था। हमेशा महसूस करता कि मैं साधारण व्यक्ति से भी तेज दौडऩे में सक्षम हूँ।
मुझे कभी नहीं लगा कि हार मानने का वक्त आ गया है। मैंने स्केट बोर्ड इतना अच्छे तरीके से सीखा कि एक्स गेम्स में मुझे स्केटिंग के लिए सिल्वर मैडल मिला। जब मैंने एक्स गेम्स में सिल्वर मैडल जीता, तो मुझे इनाम के तौर पर 11 सप्ताह यूरोप और एशिया घूमने का मौका दिया गया। मेरी फोटोग्राफी को 'द रॉलिंग एग्जीबिशन' नाम से प्रस्तुत करना चाहते थे। अपने बड़े कलेक्शन को मैंने निकोन के उस कैमरे से तैयार किया है, जो अक्सर मेरी पीठ पर ही टंगा रहता है। मैंने मजदूरों, बच्चों, भिखारियों, फसलों पर अपनी फोटोग्राफी को केंद्रित रखा है। फोटोग्राफी की शुरुआत मैंने वियना से की थी और मेरी पहली ही फोटोग्राफी सिरीज को जमकर सराहना मिली। मुझे याद है, जब मैं मोंटाना स्टेट यूनिवर्सिटी में फोटोग्राफी की पढ़ाई करने गया, तो अपनी पहली क्लास में एक रील भी पूरी नहीं कर पाया था। यहीं पर मैंने फिल्म संबंधी क्लास भी ली थी, जिसमें मैंने असल फोटोग्राफी के मायने सीखे। मेरी फोटोग्राफी को हर जगह सराहना मिली। इसी वजह से मुझे मोंटाना स्टेट यूनिवर्सिटी की ओर से फोटोग्राफी ग्रांट (फोटोग्राफी सीखने के लिए सहायता) दी गई, जिसके तहत मैं फोटोग्राफी करने के लिए स्विट्जरलैंड, इंग्लैंड और फिर आइसलैंड गया। मैं पढ़ाई के लिए न्यूजीलैंड भी गया और अपनी डिग्री वहीं से पूरी की।
मैं थिएटर आर्टिस्ट भी हूँ और अखबारों के लिए लिखना मेरा शौक है। अब तक स्केट बोर्ड से खेली जाने वाली कई स्थानीय प्रतियोगिताओं में मैं भाग ले चुका हूँ। मैं हमेशा यही जानना चाहता था कि यह दुनिया कितनी कलात्मक है? जब सफर पर निकला, तो आज तक रुक ही नहीं पाया। सब मुझे देखते ही हैरत करते हैं और मेरे दोनों पांव नहीं होने की वजह तलाशने की कोशिश करते हैं। मैंने 15 देशों के 31 शहरों से जब तस्वीरें खींची, जिन्हें देख हर किसी ने सराहा। मैं खुश हूँ, मैंने जितना पाया, उतने की उम्मीद कभी नहीं की थी। अपने दोनों पांव न होने का जरा सा भी मलाल मुझे नहीं है। दुनिया घूमी है इसलिए महसूस करता हूँ कि मेरी जिंदगी खुद एक तस्वीर की तरह है, इसमे जितनी खुशी के भाव होंगे, उतनी ही खूबसूरत तस्वीर बनेगी।
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11 comments:

Rakesh Singh - राकेश सिंह said...

प्रवीन जी बहुत बहुत धन्यवाद की आपने ऐसे महान केविन कोनोली से अपने पोस्ट के जरिये परिचय करवाया |

ऐसे लोगों के बारे मैं जान कर इनसे मिलने जी चाहता है |

कौन कहता है आसमा मैं सुराग नहीं हो सकता
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो -- दुष्यंत कुमार

Mohammed Umar Kairanvi said...

जाखड भाई, मैं तो सोच भी नहीं पा रहा कमेंटस में किया लिखूं, इस आदमी की हिम्‍मत की दाद दूं या इस की हिम्‍मत और हौसले से मिली सफलता से खुद शर्मिंदा होउं, खेर बहुत अच्‍छा लगा पढके, आगे अल्‍लाह की मर्जी वह इस लेख से किसी को या मुझे किया सबक हासिल करवाता है, बधाई

शरद कोकास said...

धन्य है ऐसे लोग जिनके कारण यह धरती अभी बची है ।

Gyan Darpan said...

सलाम है इसके जज्बे और हिम्मत को | और आभार आपका ऐसे लोगो के बारे में जानकारी देने का |

संगीता पुरी said...

विकलांग होते हुए भी केविन कोनोली ने अपने जीवन में जो कर दिखाया .. वह काबिलेतारीफ है .. एक प्रेरक व्‍यक्तित्‍व से परिचय करवाने के लिए आपका धन्‍यवाद !!

mehek said...

aise jazbe ko naman,sahi mayane mein yahi zindagi jeena hai.

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत ही उर्जावान व्यक्तित्व से मिलवाने का आभार. बहुत शुभकामनाएं.

रामराम.

राजीव तनेजा said...

केविन कोनोली की हिम्मत और जज़्बे को सलाम..साथ ही आपका भी हार्दिक धन्यवाद ऐसे व्यक्तित्वों से परिचय कराने के लिए

Unknown said...

jaroor paden
तो फिर कैसे होगी सही व सटिक भविष्यवाणी, हमें बदलनी होगी भूमिका

(नोट- यह आर्टिकल प्रवीण जाखडज़ी और संगीतापुरीजी तो बहाना है मुझे तो कुछ गुजरना है..., का ही भाग है, किन्हीं कारणों से हेडिंग को बदला है। इस आर्टिकल में जानबुझकर प्रवीण जाखड़ जी व संगीतापुरीजी के नाम का उल्लेख नहीं किया गया है। लेकिन इसे आप प्रवीण जाखडज़ी और संगीतापुरीजी तो बहाना है, मुझे तो कुछ कर गुजरना है... लेखमाला के तारतम्य में ही देखें। बाकी बातों की चर्चा लेखमाला की अगले व अंतिम भाग में करेंगे। फिलहाल तो आप इस आर्टिकल को पढ़ें। लेख बड़ा जरूर है, लेकिन निवेदन यही कि पढ़कर अपना मत जरूर बताएं। धन्यवाद -पंकज व्यास, रतलाम)

राजीव तनेजा said...

प्रवीण जी, नमस्कार...हँसते रहो पर एक पहेली चला रहा हूँ...आपकी टिप्पणियों की वहाँ पर घोर आवश्यकता है :-)

आपकी फोटो सेव कर ली है अपनी पहेली के लिए ;-)

Anonymous said...

केविन कोनोली के जज़्बे को सलाम !!